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Akshita Gupta



अक्षिता गुप्ता की कविताएँ


मातृभाषा

हमारा हिन्दुस्तान एक ख़्वाब है, 
अनेक मातृभाषा की किताब है, 
माँ की कोख से माँ की गोद तक, 
जिसमें करते सवाल-जवाब है।
श्रीनगर की कश्मीरी से लेकर, 
कन्याकुमारी की तमिल तक, 
मिज़ोरम की मिज़ो से लेकर, 
गुजरात की गुजराती तक, 
ऐसा भाषाओं का माध्यम है, 
मिलता जुलता सा सैलाब है।
सब की भाषा है अलग-अलग,
मेल-जोल सबका लाजवाब है। 
धर्म जाति रंग रूप से बढ़कर, 
मातृभाषा हमारी पहचान है, 
ये भाषा हमें बनाती इंसान है। 
माँ की गोद में जन्म के बाद,
पहला बोल हमारी ज़बान है।
मुल्क के बाहर की भाषा से,
हमारी मातृभाषा मिटती नहीं,
वो भाषा भी किसी की पहचान है।
कहीं कहते है माँ, कहीं अम्मी,
नाम, भाषा अलग, एहसास है एक,
यही एहसास भाषा का गुणगान है।
मातृभाषा है एक माध्यम शिक्षा का,
बच्चों का समझना बनाती आसान है। 

ग़ज़ल - महिला सशक्तिकरण

ख़ुद को बना चट्टान तू, 
कर माह को रमज़ान तू । 
माता, बहिन, पत्नी, पुत्री, 
ख़ुद की बना पहचान तू । 
शमशीर ख़ुद को तू बना, 
डर तोड़ बन तूफान तू । 
है देवियों का रूप तू, 
गीता एवं कुरआन तू । 
जो मौत को भी मात दें, 
उस देश का गुन-गान तू । 
हैवान का भुगतान हो, 
आगे बड़ा फ़रमान तू।


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